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मोय साँवरे ने गारी दई, दई मैं तो कछु ना कही।
इत मथुरा उत गोकुल नगरी, बीच में जमुना बही।
आपु तौ सैयाँ पार उतरि गये, हम तकति की तकति रहीं।।
दौरि कें पकरौं तो पकरि न आवै, घाटहिं देखि डरीं।
मन की तौ कछु कहि न सकत हों, मेरे दिल की दिलहिं रही।।