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देखौ स्याम मेरी छाँड़ों गैल, न तौ मारोंगी सैनन में।।
करत फिरत नित उठि लँगराई, लाज न नैनन में।
होरी खेलन जो तुम चाहत, अईयो मधुबन में।।
भूलि जाउगे सब चतुराई, करिहों जो मन में।
‘त्रिपुरारी’ भजि बालकृष्ण छबि, बिहरत कुंजन में।।