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मदमातौ छैल ठाढ़ौ रोकै गैल, कैसे जाऊँ री सखी आज पनियाँ भरन।।
मुकुट की लटक चटक पीरे पटकी, माधुरी मूरति सौहै स्याम बरन।
अबीर गुलाल के बादर छाये, पिचकारिन रँग लागै परन।।
बाजत ताल मृदंग झाँझ ढफ, रहृौ ना जात सुनि ढफ की धरन।
बलि बलि जात ‘जनार्दन’ प्रभु की, बसौ सदा हिय मेरे चरन।।