प्रख्यात राष्ट्रीय कवि ,पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई गाँव में 4 अप्रैल 1889 को एक वैष्णव परिवार में हुआ था | मिडिल स्कूल और नार्मल की परीक्षा पास करने के बाद 1904 में वे खंडवा के मिडिल स्कूल में 8 रूपये मासिक वेतन पर अध्यापक नियुक्त हो गये | स्वाध्याय से उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था |
चतुर्वेदी लोकमान्य तिलक के विचारों से बहुत प्रभावित थे फिर उनका सम्पर्क गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ और दोनों ने गांधीजी से भेंट की | यह भेंट चतुर्वेदी जी के जीवन को नई दिशा प्रदान करने वाली सिद्ध हुयी और वे पुरी तरह से राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत हो गये | उन्होंने राष्ट्रीय कविताये लिखकर और 1919 में “कर्मवीर” साप्ताहिक का सम्पादन आरम्भ करके अपने नये जीवन में प्रवेश किया | वे राजनीति और साहित्य दोनों क्षेत्र में साथ साथ आगे बढ़े |
1921 में उनको राजद्रोह के अपराध में सजा हुयी | 1923 के नागपुर के झंडा सत्याग्रह में उन्होंने भाग लिया | 1923 में ही गणेश शंकर विद्यार्थी के गिरफ्तार हो जाने पर चतुर्वेदी जी कुछ समय तक “प्रताप” के सम्पादक भी रहे | 1930 के असहयोग आन्दोलन में चतुर्वेदी जी (Makhanlal Chaturvedi) को फिर जेल की सजा हुयी | जेल से छुटने पर उनकी अध्यक्षता में मध्य भारत में भारत प्रजा मंडल का गठन हुआ |
राजनीति के आकंठ में डूबे रहने के बावजूद माखनलाल चतुर्वेदी की साहित्यिक देन भी उतनी ही महत्वपूर्ण है | वे “एक भारतीय आत्मा’ के नाम से कविताये लिखते रहते थे | उनकी प्रमुख काव्य कृतियाँ है “हिम किरितीनी ” “हिम तरंगिनी” “माता” “युग चरण” “समपर्ण” “”समय के पाँव” “मरण ज्वार” “वेणु लो गूंजे धरा” | “साहित्य देवता” “अमीर इरादे गरीब इरादे” “चिंतक की लाचारी” “कला का अनुवाद” आदि निबन्ध संग्रह और कहानी संकलन है | उनकी रचित “पुष्प की अभिलाषा” शीर्षक छोटी कविता आज भी लोकप्रिय है |
माखनलाल चतुर्वेदी को उनके योगदान के लिए साहित्य अकादमी , हिंदी साहित्य सम्मेलन ,सागर विश्वविद्यालय आदि ने पुरुस्कारों और मानद उपाधियो से सम्मानित किया | हिंदी साहित्य सम्मेलन के हरिद्वार अधिवेशन की अध्यक्षता उन्होंने ही की थी | मध्य प्रदेश सरकार की ओर से आपको थैली भेंट की गयी और भारत सरकार ने “पद्म भूषण” से अलंकरण से सम्मानित किया | 30 जनवरी 1968 को उनका देहांत हो गया |
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