चतुर्वेदी समाज को लेनी होगी सामाजिक ज़िम्मेदारी, ना छोड़ें अपने जातीय गुणों को
संजय चतुर्वेदी (होलीपुरा/ फ़रीदाबाद)
‘चतुर्वेदी’ उपनाम सुनते ही प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में अलग ही छवि उभर कर आती है। हमारी पहचान एक शिष्ट समाज के रूप में बनी हुई है। अगर प्रचलित गुणों की बात करें तो हमें बुद्धिमान, शिष्ट, शालीन, मनमोहक व्यक्तित्व और दबंग होने के गुण प्राकृतिक रूप से मिले हैं । अधिकतर चतुर्वेदी अपने कार्य में दक्ष माने जाते हैं और विभाग कोई भी हो ये नौकरी हो या व्यवसाय अपनी शर्तों पर काम करते आए हैं । हालांकि पिछले एक दशक की बात करें तो बहुत कुछ बदला है । जहां एक ओर एमएनसी ने अपनी शर्तों पर काम करने की आदत छुड़वा दी वहीं हमारे खान पान की आदतों में बदलाव ने हमारी वैचारिक क्षमताओं और हमारे नज़रिये को बदला है। शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा जहां चतुर्वेदी समाज ने अपनी छाप ना छोड़ी हो । लेकिन यह आवश्यक है कि बदलती सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार अपने व्यक्तित्व में आवश्यक बदलाव लाया जाये । हमारी स्वच्छंद और बेपरवाह से छवि काफी हद तक बदल चुकी है । समाज का जुड़ाव भी कम हो गया है । महानगरों में दूरियाँ ज़्यादा बढ़ी हैं जिसका प्रमुख कारण ट्रैवल टाइम और व्यवसाय की मजबूरी है । लेकिन इन सबके बावजूद जो हमारे समाज को अभी भी अलग बनाता है वो है सम्बोधन। पता लगते ही कि सामने वाला चतुर्वेदी है अनायास ही मुह से निकलता है “पालागन” । हमारा प्रयास होना चाहिए कि आपस के जुड़ाव के इस शब्द को ना छोड़ें। हमारी युवा पीढ़ी को भी इस अभिवादन की आदत जहां तक डाली जा सके वो भविष्य के लिए बेहतर ही होगा।
यह हमारे समाज का सौभाग्य है कि हम में से कुछ लोग प्रतिष्ठित पदों पर बैठे हैं । कुछ ऐसे भी बंधु हैं जिनका अपना व्यवसाय है । प्रयास होना चाहिए कि समाज के किसी व्यक्ति की मदद की जा सके तो अपने पद का प्रयोग करते हुए अवश्य की जाये । वैसे भी कहा जाता है कि जब आप किसी को आय का साधन देते हैं तो यह एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक परिवार की सहायता होती है । तो फिर क्यों ना प्रयास किया जाये कि किसी भी अवसर का पहले मौका अपने ही किसी बंधु को दिया जाये ।
एक बात जो विशेष रूप से महत्व रखती है वो है समाज के उत्थान में चतुर्वेदी समाज का योगदान। जहां एक ओर हम प्रबुद्ध वर्ग के माने जाते हैं वहीं हम अपने आसपास के वातावरण से अछूते नहीं हैं । हम सभी सोशल मीडिया पर अपने विचार बखूबी बयान रखते हैं वहीं शायद इन विचारों का समाज के हित में प्रयोग नहीं हो पाता । प्रयास होना चाहिए कि हम अपनी बात को पुरजोर तरीके से आवश्यक समय और प्लैटफ़ार्म पर रखने की सामर्थ्य रखें । हमारा संगठन ऐसा हो जिसकी आवाज़ की गूंज दूर तक जाये । अपने well placed बंधुओं से सहायता मांगने में ना तो हमें शर्म महसूस करनी चाहिए और ना ही उन्हें इस विषय में पीछे हटना चाहिए । अगर हम अपनी बात सही प्लैटफ़ार्म तक ले जा सकें तो हमारे समाज के कुछ और लोग ऐसे शीर्ष पर पहुँच सकते हैं जहां वो आवश्यक नीतियों में बदलाव के कारक बन सकें । यह एक विचार है जिस पर सकारात्मक मंथन का स्वागत भी होना चाहिए और इससे क्या संभावनाएं विकसित हो सकती हैं यह भी देखना चाहिए। आशा है इस विषय पर इस प्रबुद्ध समाज के प्रबुद्ध जन अपने विचार अवश्य साझा करेंगे। एक बार चर्चा शुरू हो जाए तो विभिन्न विषयों पर चर्चा के लिए एक मंच भी स्वाभाविक रूप से बन सकता है । वैसे इस मंच के लिए पालागन डॉट कॉम एक अच्छा मंच बन सकता है। हम इस मंच को फेसबुक, ट्वीटर, वेब पोर्टल के माध्यम से आसानी से जुडने का प्रयोग कर सकते हैं । व्हाट्स ऐप ग्रुप पर भी प्रयास किया जाये कि चतुर्वेदी समाज के उत्थान के नज़रिये से पोस्ट शेयर की जाएँ तो बेहतर है ।
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