
विश्वइतिहास में कई महान सेनानायक,राजा, योद्धा हुए है जिनके शानदार स्मारक उनकी गौरव गाथा का गुणगान करते है। किन्तु 'चेतक' जैसे स्वामिभक्त घोड़े या जानवर की समाधी शायद ही मेवाड़ के अलावा विश्व में हमें कही और देखने और सुनने को मिले। रविवार पापा मम्मी के साथ उदयपुर के भ्रमण के दौरान मैंने उन्हें नाथद्वारा के साथ "हल्दी घाटी" जरूर देखने के लिए फाॅर्स किया। मेरा ऐसा मानना है की भले आप कही जाए न जाए लेकिन स्वयं को और अपने परिवार को ऐसी ऐतिहासिक जगह पर जरूर ले कर जाए जोकी हमारे जीवन में प्रेरणा स्त्रोत का काम करती है। जिनकी कहानी हमारे जीवन में निराशा के समय आशा का काम करती है। ये महान स्थान इस बात के गवाह है की परिवार , समाज के ऊपर भी कुछ है और वो है "राष्ट्रवाद", देशप्रेम। ये स्थान हमें गौरवान्वित महसूस करवाते है की विश्व में ऐसे भी योद्धा हुए है जिन्होंने अपनी 'निजी स्वतंत्रा','निजता' और 'स्वाभिमान' के लिए जीवन भर संघर्षो में रहना स्वीकार किया परन्तु अधीनता स्वीकार नहीं की।
"चेतक " एक काठियावाड़ी नस्ल का नीला रंग का घोडा था जो की विश्वनायक, वीरशिरोमणि महाराणा प्रताप का प्रिय था। जिसकी मृत्यु १८ जून १५७६ को "हल्दीघाटी" के युद्ध में अपने स्वामी "राणा प्रताप" को ३० फ़ीट नाले को पार करते समय हुई। राजस्थान की "थर्मोपॉली" के नाम से प्रसिद्ध यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के मध्य हुआ। इतिहास में या यूँ कहे विश्व के इतिहास में "प्रताप" से ज्यादा कई वीर योद्धा हुए है चाहे वो "राणा कुम्भा" हो, "राणा सांगा" हो, "पृथ्वीराज" हो या "शिवाजी","अकबर" हो, "नेपोलियन बोनापार्ट" , "सिकंदर" महान या फिर "अशोका दी ग्रेट। फिर भी मेरी नज़रो में इन महान योद्धाओ में "प्रताप " का एक अलग ही स्थान है। ऐसा कहा जाता है इनके पिता उदय सिंह की मृत्यु के समय इनके बड़े भाई "जगमाल" को उत्तराधिकारी होना था परन्तु मेवाड़ में अकबर के आक्रमण, इनकी वीरता, नेतृत्व क्षमता,संघटन क्षमता और राष्ट्र प्रेम को देखते हुए सलूम्बर के सामंत(सलूंबर के सामंतो को अधिकार था) "कृष्णदास चुण्डावत " ने इन्हे उत्तराधिकारी घोषित किया था। अकबर ने अपने दरबार से कई डेलीगेट्स (प्रतिनिधि) संधि और आधीनता स्वीकार करने के लिए महाराणा प्रताप के समक्ष भेजे, चाहे वो "जलाल खा" हो या "मानसिंह", भगवंत दास हो या टोडरमल परन्तु इस राजऋषि के द्वार से सबको खाली हाथ ही लौटना पड़ा। जिसके परिणाम स्वरुप जून १५७६ में "हल्दीघाटी" का युद्ध हुआ। आज के रूस-यूक्रेन के युद्ध के सामान ही 'अकबर' की महान सेना के सामने प्रताप की छोटी से टुकड़ी ने मुग़ल सेना के दांत खट्टे कर दिए। आज के दौर में बिना स्वार्थ के कोई किसी के साथ खड़ा नहीं होता उस समय "पुंजा" भील के नेतृत्व में भील आदिवासी और लौहार समाज ने कंधे से कन्धा मिलाकर जीवन पर्यन्त प्रताप का साथ दिया। वो प्रताप ही थे जिन्होंने पिछड़े भील आदिवासी समाज को आपने समकक्ष रखा जो उनके दलितों वंचितों और दबे कुचले वर्ग के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है। हमने पड़ा है अक्सर युद्धों में जीती गई स्त्री या महिलाओ, बुजुर्ग और बच्चो को बंधक बनके हरम में या दास दासी बना के रूप में रखा जाता था उसके विपरीत प्रताप ने दुश्मन की महिलाओ और उनके बच्चो को ससम्मान लौटाया जोकि उनके विशाल चरित्र को दर्शाता है।
चाहते तो वो दूसरे राजाओ की तरह आधीनता स्वीकार करके आराम से मेवाड़ का सुख भोग सकते थे परन्तु इस अक्खड़,निडर देशभक्त ने अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए लगभग २५ वर्षो तक जंगलो, कंदराओं में छिप कर युद्ध करके मृत्यु को गले लगाना ज्यादा उचित समझा और अपने प्रिय घोड़े के शहादत त के ठीक २२ वर्ष बाद चावंड में आखिरी सांस ली।
रात हो चली थी बलीचा में चेतक के समाधी से लेकर उदयपुर आने तक पूरी यात्रा मेरे मनमस्तिकः में चलती रही सोचा इसके इस प्लेटफार्म के माध्यम से आप से साँझा करू अगली बार आप जब भी मेवाड़ घूमने आये तो 'गोगुन्दा' , 'कुम्भलगढ़', 'चावंड', 'हल्दीघाटी' को देखन न भूले और अपनी लिस्ट में शामिल करे, अपने परिवारजन और बच्चो को भी गौरवान्वित महसूस करवाए। क्यूंकि मेवाड़ में कहावत है यहाँ एक नहीं कही थर्मोपॉली और मेराथन हुए है और हर घर में लिओनिर्देस जैसे महान युद्धा ने जन्म लिया और प्राण न्यौछावर किए है।
"धोरा घाटया तालरो अंटीलो इतिहास , गांव गांव थर्मोपॉली घट घट लियोनिरदास"
अविका , आदि पापा मम्मी की साथ बिताए कुछ यादगार पल।
पंकज चतुर्वेदी
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