मकर संक्रान्ति का पर्व
14 जनवरी को जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि पर जाते हैं तो मकर संक्रान्ति का पर्व सारे देश में लोहड़ी,पोंगल,खिचड़ी आदि नामों से मनाया जाता है।इस दिन से सूर्य उत्तरायण में हो जाते हैं जिससे भीष्म पितामह की कथा जुड़ी हुई है।महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। संक्रांति मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
आज मैंने सुबह से मकर संक्रांति से सम्बंधित अनेकों पोस्ट देखीं जिसमें एक पोस्ट आदरणीय श्री शम्भूनाथ शुक्ल जी की थी जिसमें संक्रान्ति के दिन खिचड़ी के दान और खाने की चर्चा है।एक और पोस्ट थी भाई मनीष स्वरूप चतुर्वेदी, इटावा की जिसमें मकर संक्रांति के दिन श्री माथुर चतुर्वेदी लोगों के यहाँ के खाने मूंग,भात, झोर का जिक्र है। मैंने अपने बाबा की डायरी देखीं तो उनकी पुरानी डायरी में भी इस खाने का जिक्र है।मैं उसकी फोटो भी शेयर कर रहा हूँ।
जब मैं इलाहाबाद में पढ़ता था तो वहाँ मकर संक्रान्ति को माघ मेले की शुरुआत, संगम का नहान और खिचड़ी इन सब रूपों में जाना। कई स्थानों पर इस दिन पतंग भी बहुत जोर-शोर से उड़ाई जाती है,पतंगबाजी के कम्पटीशन भी होते हैं।
हम लोगों के घर में संक्रान्ति को किस्म-किस्म के लड्डू बनते थे/हैं जैसे तिल के तिलवा (गुड़ के), गुड़ और खोए के तिलकुटा, चना गुड़ के लड्डू, लाई के लड्डू और पहले ज्वार के लड्डू भी बनते थे किंतु अब अनेक वर्षों से ज्वार के लड्डू नहीं बन रहे क्योंकि ज्वार के दाने अब हमारे यहाँ नहीं मिलते हैं। वैसे तो इस पर्व पर तिल के लड्डुओं का विशेष महत्व है पर शायद श्री माथुर चतुर्वेदी लोगों में हर पर्व पर मीठी चीज का बहाना चाहिए तो अन्य चीजों के लड्डू बनना स्वाभाविक ही था। मकर संक्रान्ति पर सुबह गाय के गोबर से लीप कर फिर उसपर चौक लगा कर खिचड़ी की सामग्री का दान किया जाता था/छिरका जाता था या कहें वह सामग्री अलग निकाल दी जाती थी। इसमें एक परात में हमारी मम्मी सब घर वालों के हिसाब से अलग-अलग ढेर बना कर रख देती थीं और सब लोग उन ढेरों पर कुछ रुपये/सिक्के रख कर स्पर्श कर देते थे और उसके बाद आता था बच्चों के एक्साइटमेंट का समय जब मिट्टी की बनी किस्म-किस्म की गाड़ियों जिनको खड़खड़िया कहते थे उन पर अलग-अलग किस्म के लड्डू रखे जाते थे और बच्चे उनमें बंधी डोरी से उनको खींचते थे और फिर मजे से लड्डू खाते थे। हमारे घर में यह परंपरा अभी जारी है।
आप सभी को मकर संक्रान्ति पर्व की बधाई और शुभकामनाएं!
अतुल चतुर्वेदी
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