अंत्येष्टि - नियम एवं परम्परा

अंत्येष्टि - नियम एवं परम्परा

 

श्रीमद्भगवद्गीता

अध्याय २ श्लोक २७ 

 

श्रीभगवानुवाच : 

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।

 

।2.27।। क्योंकि पैदा हुएकी जरूर मृत्यु होगी और मरे हुए का जरूर जन्म होगा। इस (जन्म-मरण-रूप परिवर्तन के प्रवाह) का परिहार अर्थात् निवारण नहीं हो सकता। अतः इस विषयमें तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये।


 


यद्यपि हम सभी जानते हैं कि जो जन्मा है उस  देह का  अंत अवश्य है फिर भी शोक हमें व्यथित  कर देता है ।  इस शोक  की घडी में भी अंतिम  संस्कार शास्त्रोचित परम्पराओं के अनुरूप करना मृतक का अधिकार है तथा परिजनोका दायित्व है।  इस लेख के माध्यम  से चतुर्वेदी समाज की परम्पराओं तथा शास्त्र के मत के अनुरूप इस  अवसर पर किये जाने वाले कर्तव्यों का विवरण यहाँ दिया जा  रहा है।  इसका उद्देश्य उन बांधवों को  जानकारी देना है जो इन क्रियाओं से अनभिज्ञ हैं । स्थान और स्थानीय परम्पराओं के हिसाब से कुछ फेर बदल पाया जा सकता है।
 

  1. देह त्याग के लिए सर्वोत्तम स्थान अपना घर माना जाता है जहाँ पर गृहस्थ आश्रम के सभी अनुष्ठान किये जाते रहे हों।  शरीर  त्यागते समय किसी शय्या के बदले धुली हुई साफ  भूमि पर स्थित होना उत्तम माना गया है।  शय्या पर प्राण त्यागने पर  कुछ अतिरिक्त विधान वर्णित है जो अक्सर पूरे न किये जाने पर पितृ कार्य दोष पूर्ण रह जाता है।  जहाँ तक संभव हो यदि अंत समय में चिकित्सक  उपचार करने में असमर्थता बता चुके हों या अंत समय एकदम करीब बताते हों तो रोगी को जीवित घर लाने  का प्रयास करना उचित है जहाँ के पवित्र वातावरण में वह इस नश्वर देह का त्याग कर सके। मृत काया को अंतिम यात्रा से पहले दक्षिण दिशा की ओर पैर करके लेटाना चाहिए। घर परिवार में किसी की मृत्यु होने पर सूतक लग जाने से पूजा आदि स्थगित हो जाती है।
  2. मृतक के पुराने दूषित वस्त्र उतार कर स्नान कराएं. नए धुले बिना सिले वस्त्रों  में मृतक को लपेट दें । मृतक के मुख में तुलसी, गंगाजल और पंचरत्न रखें।
  3. कोई भी बन्धन शरीर से हटा लें जैसे हॉस्पिटल की पट्टी  यज्ञोपवीत इत्यादि 
  4. अर्थी पर घास बिछा दें 
  5. कफ़न का आधा वस्त्र उसके ऊपर बिछा दें।  ध्यान रहे की मृतक का मुँह खुला रहेगा इसलिए कफन का बाकी आधा  भाग नीचे बिछा कर छोड़ दें। 
  6. मृतक को इस वस्त्र पर लिटा दें।  जो बाकी  बचा आधा हिस्सा है उसे पैरों की तरफ से मोड़ कर मृतक के ऊपर ढक दें। मुँह को खुला रहने दें 
  7. जौ के आटे और काले तिल  से ५ पिंड (गोले) बना लें।  ये आटा यथासंभव  उसी व्यक्ति के द्वारा बाएं हाथ से तैयार किया जाये जो अंतिम संस्कार करने वाला है । 
  8. सुतली और कलावे को मिला कर रस्सी बना लें।  इस रस्सी से  अच्छे से अर्थी को बाँध दें।  ढीला रहने से शव के अस्तव्यस्त होने की आशंका रहती है अतः सावधानी से कस कर बांधें।
  9. सभी परिजनों द्वारा मृतक के अंतिम दर्शन और पुष्प भेंट करवा कर मृतक का मुँह ढंक  दें । कई स्थानों पर घर के परिजनों द्वारा नारियल अर्पित करने की प्रथा है।  
  10. मृतक के दोनो हाथों के पास  एक एक पिण्ड रख दें ।
  11. एक मटकी में घर के बाहर जलाए गए  कण्डे को  लें जिसे मृतक के साथ श्मशान ले जाना होता है। यह मटकी यथासंभव दाह संस्कार करने वाला व्यक्ति अर्थी के आगे लेकर चले। कोई भी व्यक्ति अर्थी पर फूल व मखाने भी फेंकता रहे। अंतिम  संस्कार के लिए घर से ले जाई  गई पवित्र आग का प्रयोग उचित माना गया है। 
  12. जिस परिजन के द्वारा मुखाग्नि दी जानी है वह घर से ही  केश मुंड़ा कर नहा कर नए वस्त्र पहन ले।  कुछ स्थानों पर ये कार्य घाट  पर ही किया जाने का प्रचलन है परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से नगरों में घाट पर नाई ढूंढना फिर वहीं स्नान करना न तो सुविधापूर्ण है और न ही वहां साफ़ सफाई उस स्तर  की होती है जिसके अब हम आदी  हो चुके हैं. फिर इस सब में समय लगने के कारण भी  पूरी क्रिया में अवांछित विलम्ब होता है । 
  13. परिजनों द्वारा अर्थी को कंधे पर ले लें।  श्री राम नाम सत्य है का उच्चारण करते जाये। अर्थी को कंधा देने परिजन पहल करें। 
  14. मृतक को घर से बाहर  निकालते समय सिर को पहले निकालें।  शव वाहन को थोड़ा दूर खड़ा कर के कुछ दूर अवश्य चलें।  ये मृतक  के प्रति  आपका   अंतिम कार्य है अतः मन से करें। 
  15. श्मशान पहुँचने से पहले किसी मंदिर या पवित्र स्थान पर मृतक को कुछ क्षण के लिए विश्राम दें, हो सके तो शव वाहन  से निकाल कर मंदिर अथवा बगीची इत्यादि में बने विशेष स्थान पर लिटाएं। इस अल्प विश्राम में मृतक के हाथों  में पहले  दिये गये पिंडो  को दाह-संस्कार करने वाले व्यक्ति द्वारा  निकाल कर चार हिस्सों में तोडकर चारों दिशाओं में  पीछे की ओर बिना देखे फ़ेंक देना चाहिए ।  अब दूसरे दो पिंड मृतक के हाथों के पास में संस्कार करने वाला व्यक्ति रख दे।
  16. शव यात्रा पुनः आरम्भ कर के श्मशान ले जाएँ। ध्यान रखें कि इस विश्राम के बाद अर्थी की दिशा बदली जाती है। अर्थात घर से लाते समय सिर का भाग आगे रखा था तो अब पैरों वाला सिरा आगे रहेगा। साथ ही घर से अर्थी उठाते समय जिन परिजनों ने सिर की ओर कंधा दिया था अब वे पैरों की तरफ कंधा देंगे। 
  17. शव को चिता पर लिटाने के पहले उस पर चढाए गए सभी फूल माला और वस्त्रादि हटा कर आधी बनी चिता पर लिटा दें।  अब परिजन मृत देह पर अच्छी तरह से  घी का लेप करें। सिर और मुख पर मात्रा ज्यादा रखें। आँखों पर कपूर के टुकड़े रखें। और यदि उपलब्ध है तो चंदन की लकड़ी या चंदन की छीलन चढा दें। 
  18. मृतक  के हाथों के पास  में रखे पिंडो को दाह-संस्कार कर्ता  लेकर चार टुकड़े कर चारों दिशाओं में  फ़ेंक दे और शेष बचे पिंड को मृतक के सीने पर रख दें। 
  19. श्मशान में महापंडित के निर्देशानुसार अंतिम संस्कार सम्पन्न करें। 
  20. मुखाग्नि के बाद जब चिता कुछ देर जल चुकी हो तो जलती चिता के अंदर ही मृतक के सर पर बांस में बँधे लोटे में पिघला घी लेकर कपाल पर डाल दें। अग्नि की गर्मी से तप्त कपाल पर घी पडने से कपाल चटक जाता है । और कपाल क्रिया द्वारा मृतक को मुक्ति मिलती है। कई नासमझ लोग शव के कपाल पर बाँस द्वारा प्रहार कर कपाल क्रिया के नाम पर मृतक का अपमान करते हैं। 
  21. घर पर महिलाएं शव यात्रा के जाने और दाह संस्कार प्रारम्भ  के बाद घर को धो कर स्नान इत्यादि कर के भोजन बनायें जिसमे हल्दी और हींग (छौंक)का प्रयोग न हो। इस भोजन में 10 दिनों तक  उड़द की दाल जरूर बनाना चाहिए। यदि किन्हीं लोगों को उड़द की दाल से परेशानी हो तो जो भी बनाये उसमें उड़द की दाल के कुछ दाने अवश्य डाल दें।   शाम का भोजन १० दिन तक समाज के सदस्यों या परिजनों के यहाँ से आने की परंपरा है। 
  22. मृत्यु के दिन से 10 दिनों तक एक बत्ती का दिया सरसों के तेल से लगातार जला कर रखें। माना जाता है कि मृतक की आत्मा 10 दिन तक घर के आसपास ही विचारण करती है।
  23. तीसरे दिन अस्थि संचय कर के सीधे विसर्जन के लिए ले जाएँ।  संचित अस्थियों  को घर इत्यादि में रखना उचित नहीं है। मंगलवार बृहस्पतिवार और शनिवार कड़े दिन माने जाते हैं अतः यदि तीसरा दिन इनमें हो तो अस्थि संचय एक दिन पहले ही कर लें।
  24.  अस्थि संचय के दिन शाम को  विगत जीवात्मा के लिए किसी पीपल के पेड़ पर शुद्धि के दिन तक के लिए एक  मटकी में जल भर कर लटका दें और उसे नित्य जल से भरते रहे . उसी पीपल के पेड़ पर नित्य सायं  सरसों के तेल से एक ही बत्ती का दीप जलाएं। 
  25. दस दिन तक रोज मृतक के नाम से संकल्प करके  खाने की थाली लेकर एक गाय को खिलाएं । धारणा है कि संस्कार करने वाला व्यक्ति केवल गाय को भोजन कराने के लिए तो बाहर जा सकता है पर अन्य कहीं जाना निषेध है।
  26. दसवे दिन शुद्धि के लिए बगीची या मंदिर में पानी की मटकी उतार कर पुनः केश दान शय्या दान तथा पिंड दान करके शुद्ध होवें । अन्य परिजन जो केश देना चाहते हैं वे शुद्धि के दिन ऐसा कर सकते हैं।
  27. शुद्धि के बाद यदि घर में भगवान की मूर्ति आदि रखी है तो उनका पूजन शुरू कर सकते हैं।
  28. शव दाह से १२ या तेरहवे दिन घर में हवन के बाद तेरह ब्राह्मण या ब्राह्मणियों को भोजन करा कर मृतक की मुक्ति के लिए प्रार्थना करें । उचित संख्या में ब्राम्हणों के न मिलने पर घर की विवाहित बेटी दामाद व भांजों को शामिल किया जा सकता है।  मृतक के नाम पर ब्राम्हणों को यथाशक्ति पदों  का दान उचित संकल्प के साथ करें।  
  29. इसके बाद एक वर्ष तक मृतक के लिए ब्राह्मण को नित्य भोजन का प्रावधान है।  यदि यह करना कठिन हो तो प्रत्येक अमावस्या को ब्राह्मण को बुला कर भोजन कराएं और एक माह के भोजन के लिए अन्न दाल घी नमक मसाले इत्यादि दें।  अन्यथा इस सबके लिए धन दे दें 
  30. जिस तिथि को मुखाग्नि दी गयी हो उसके एक वर्ष बाद बरसी का अनुष्ठान करें।  इस दिन बारह ब्राह्मणो को बुला कर भोजन कराएं और दान दें। और फिर प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष में (आश्विन कृष्ण पक्ष ) उसी तिथि को तर्पण के बाद  ब्राहण को श्राद्ध भोजन कराएं 

 

नोट : कृपया दया और दान में भ्रमित न हों।  दया किसी पर भी की जा सकती है पर दान के लिए सुपात्र का होना आवश्यक है जो  कर्म और आचरणों से सनातनी और संस्कारी हो।  दान लेने वाला एक माध्यम है जिसे शुद्ध होना आवश्यक है।  दया वश अनाथालय में कम्बल देना , अंधे अपाहिज, भिखारियों को भोजन देना मात्र दया के कार्य हैं इनका अनुष्ठानों में कोई स्थान  नहीं है. 

Mahendra Chaturvedi