स्वर्गीय श्री गिरीश चन्द्र चतुर्वेदी - जीवन परिचय (01.08.1920 – 06.10.2012)
स्मृतियों का एक बड़ा समृद्ध देश है और उसमे संजोये बहुत सी यादें व व्यक्तित्व | विविध संदर्भ और प्रसंग उन स्मृतियों को जीवंत कर देने में सक्षम | आज ऐसे ही एक व्यक्तित्व के संदर्भ में गागर में सागर समेटने का प्रयास है जिन्होने न केवल अपना बल्कि अपने परिवार और समाज का भी गौरव बढ़ाया, स्वर्गीय श्री गिरीश चन्द्र चतुर्वेदी (पुत्र स्वर्गीय श्री चम्पा राम चतुर्वेदी, निवासी फ़िरोज़ाबाद)।
स्व॰ गिरीश चन्द्र चतुर्वेदी का जन्म स्व॰ प्रोफेसर चम्पा राम चतुर्वेदी जी, निवासी फ़िरोज़ाबाद के घर सन 1920 में हुआ था। स्कूल और कॉलेज की शिक्षा सैंट जोंस कॉलेज आगरा में हुई । निरंतर यूपी बोर्ड से फ़र्स्ट क्लास में उत्तीर्ण होकर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में बीएससी व एमएससी की शिक्षा ग्रहण की । बड़े भाई स्व॰ प्रोफेसर जगदीश चन्द्र जी व पिताजी के प्रभाव व शिक्षामय वातावरण में शिक्षा में उत्कृष्टता तो स्वाभाविक थी, कॉलेज व यूनिवर्सिटी में सदैव फ़र्स्ट क्लास में उत्तीर्ण हुए। साथ ही साथ खेल कूद विशेषतः एथेलेटिक्स व फुटबाल में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के गौरवपूर्ण कॉक्स मेडल, विद्यान्त मेडल व बीएससी में सर्वाधिक अंक लाने के लिए सिल्वर जुबली मेडल प्राप्त किए। साथ ही यूनिवर्सिटी कलर से भी अलंकृत किए गए।
सन 1944 में स्टेट सिविल सर्विसेस में और फिर 1956 में सीनियर स्केल में सेलेक्शन के पश्चात आईएएस के रूप में बहराइच, इलाहाबाद के जिला कलेक्टर, इलाहाबाद के कमिश्नर व यूपी के विभिन्न विभागों जैसे होम, रेविन्यू , फूड अँड सिविल सप्लाई इत्यादि में कार्य किया व कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी व कार्यकुशलता के मापदंड कायम किए । सेवा निवृत्ति के पश्चात भी यूपी सरकार के पे-कमीशन के सदस्य के रूप में अपना योगदान देते रहे । गोरखपुर यूनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में एक कुशल एवं दृढ़ प्रशासक की छवि व छाप छोड़ी तथा अपनी कार्यकुशलता से सारे अवरोधों को दूर करते हुए, सत्र नियमित किए, जिससे छात्रों के भविष्य पर पड़ने वाले कुप्रभाव समाप्त हो गए । इसके लिए उनको सवेरे ब्रह्म मुहूर्त में उठकर कार्य करना पड़ता था परंतु कष्ट के विपरीत प्रसन्नता का अनुभव करते और अपने छात्रों की सफलता से आनंदित होते थे । अपने कार्यकाल में, जैसा उनके तत्कालीन अधीनस्थ कार्यरत अधिकारियों ने बताया, उन्होने अपनी कुशलता, दृढता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठता के आदर्शों को स्थापित किया । इसके उपरांत लिटरेसी हाउस के ओनरैरी वाइस चेयरमैन के रूप में प्रौढ़ शिक्षा में अपना असीम योगदान दिया।
एक आदर्श पुत्र, पिता, भाई, ससुर, चाचा, ताऊ, बाबा व नाना के रूप में भी अपने कर्तव्यों का पालन किया व परिवार एवं समाज के लिए एक आदर्श संदर्भ बिन्दु स्थापित किया। अपनी विभिन्न भूमिकाओं में अपने व्यक्तित्व में व अपने व्यवहार में कैसे सामंजस्य स्थापित करना चाहिए तथा समय के साथ कैसे बदलाव लाना चाहिए इसका तो जीवन दर्शन थे वह । एक अनुशासन प्रिय प्रशासक व पिता का रूप बाबा व नाना में परिलक्षित ही नहीं होता था। अपनी ईमानदारी के कारण अपने कटु अनुभव कभी कभी ऐसे हँस कर सुनाते थे मानों कोई बात हुई ही न हो व वह जीवन की सामान्य बात हो । उनका विश्वास था कि ईमानदारी एक तपस्या है और तपस्या में तो कष्ट उठाना स्वाभाविक है ।
भृत्यों एवं सेवकों के प्रति उदारता व यथा संभव मदद करना उनकी सामाजिक संवेदना को प्रतिबिम्बित करता था । वह उनकी जीवन शैली का अभिन्न अंग था । प्रकृति के प्रति उनकी रुचि उनके जीवन का पर्याय था । शारीरिक कष्टों के क्षर्णो में भी वे पत्तियों, टहनियों, किसलय कोपलों का संस्पर्श करते, धरती के उर्वर रूप को खंगालते, बीज बोते, व अपनी सेवा के रूप का चाय कि चुस्कियों के साथ आनंद लेते धरती पुत्र के समान प्रतीत होते थे।
जीवन नश्वर है परंतु स्मृतियाँ वह सशक्त माध्यम है जो व्यक्ति को सदैव जीवित रखती हैं। जो व्यक्ति मानवीय संवेदना, औदार्य, करुणा आदि गुणो से आप्लावित होता है वह अपने कार्यों के कारण सदाशय स्मृतियों में जीवित रहता है। ऐसा ही एक व्यक्तित्व स्व श्री गिरीश चन्द्र चतुर्वेदी जी का है।
उनके जन्म शताब्दी वर्ष 2020 में सश्रद्धा श्रद्धांजलि ।
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