शादी के बिचौलिए
वैवाहिक संस्कार मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कारो में से एक है यह संस्कार न केवल दो प्राणियों को वरन दो परिवारों को जोड़ता है l इसके माध्यम से नव दम्पत्ति को एक सुसंस्कृत पीढ़ी समाज को सौपने का दायित्व भी सौपा जाता है l हमारे भारतीय समाज में विवाह को जन्म जन्म का बंधन माना जाता है l
अत: वर वधूके चयन में विशेष सावधानी रखी जाती है कि दोनों एक दूसरे के पूरक व अनुरूप हों l हमारी भारतीय संस्कृति में नारी को शक्ति , दया , क्षमा , व बुद्धधमता की प्रतिमूर्ति माना जाता है l इसीलिए प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में कन्या को अपने भावी जीवन साथी स्वयंबर के रूप में चुनने की स्वतंत्रता दी जाती थी l
देवी द्रोपदी , कुंती , आदि राजकन्यायो का विवाह स्वयंबर पद्धति से ही हुआ था l कभी कभी तो कन्या अपने पिता भाई द्वारा चयन किये गए वर की अपेक्षा अपना मनपसंद जीवन साथी चुन लेती थी रुख्मणि ने श्री कृष्ण को चुना था l वर की योग्यता गुण व किशी प्रतियोगिता का पूरा होने पर वधूवर का चुनाव करती थी l धीरे धीरे सामाजिक परम्पराओ में परिवर्तन आता गया l वर-वधुओ का चयन परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाने लगा l परिवहन के साधन बढे और जीविका के लिए पुरुष अपनी जन्म भूमि से दूर जाने लगे l परिवार के आपसी सम्बन्ध दूर होने लगे सुयोग्य वरो का चयन मुश्किल होने लगा l वर वधुओ की तलाश के लिए नई परम्पराओ का उदय हुआ बिचौलियों या मध्यस्थों द्वारा प्रारंभ में बिचौलियों का काम पुरोहित व पंडित तथा नाई करते थे l क्योंकि उनका अधिकांश घरो में आना जाना होता था l वे पूर्ण निष्ठा ईमानदारी से अपना काम करते थे l वर वधूपक्ष के लोग उनकी बातो को महत्व देते थे l धीरे धीरे इस प्रथा में भी परिवर्तन आया कई बार बिचौलिए अपने जजमानो का गुणगान इस प्रकार करते थे कि दोनों पक्ष के लोग भ्रमित हो जाते थे l बेमेल विवाह होने लगे नतीजा ये रहा कि दम्पति के जीवन में कटुता आने लगी .परन्तु सामाजिक बंधन मान कर दोनों संबंधो को निभाते चले गए . इसका असर उनके पारिवारिक जीवन के साथ साथ संतान पर भी पड़ने लगा l
समय के साथ देश और समाज में अनेक परिवर्तन आते हैं इसके कारण बिचौलियों का स्वरुप भी बदलने लगा अब बिचौलियों का काम रिश्तेदार और मित्र भी करने लगे। ये वर वधूके परिवार की सामाजिक स्थिति के साथ साथ आर्थिक स्थिति से भी परिचित होते थे lयदि वैवाहिक सम्बन्ध ठीक रहे तो इन बिचौलियों का मान सम्मान होता यदि सम्बन्ध में खटास आ जाती तो सारा दोष बिचौलियों को दिया जाता है इस प्रकार के वैवाहिक संबंधो में बिचौलिये दहेज़ के लेन देन के लिए भी जिम्मेदार होते हैं l जो बिचौलिये ईमानदारी व तन से काम करते थे वर वधूके स्वार्थ की वजह से हतोत्साहित होने लगे अगर रिश्ता अच्छा मिला तो बिचौलियों को अलग कर दोनों पक्ष मिल गये अन्यथा बिचौलिये को गालिया पड़ने लगीं। इस बदनामी से बिचौलिये कतराने लगे l जैसे जैसे विदेशी सभ्यता का खुलापन व शिक्षा का प्रभाव बढ़ा शादी के रस्मोमें भी बदलाव आया l लोग काम काज के लिए नये शहरों या विदेशो की ओर पलायन करने लगे l वधूकी स्वतंत्रता अपना जीवन साथी चुनने की ख़तम हो गयी l पर्दा प्रथा आ गयी उसका कारण शायद यवनों द्वारा दुराचार व गरीबी रही होगी। एक बाप के 4-5 संतान होती थी इसलिए पंडित व नाई ने जो रिश्ता बता दिया उसमे गुण दोष देखे बिना शादी कर दी जाती थी l इसी समय में कम उम्रपर शादियां होने लगी lलड़कियां नौकरी कर के आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो गयी लड़का और लड़की अपने अनुरूप रिश्ता करना पसंद करने लगे इसी समय बहुत सी प्रोफेशनल कम्पनियाँ बिचौललयो का काम करने लगी lये लोग पत्रों के माध्यम से दोनों पक्षों को मिलवाने व रिश्ता तय करने में मदद करने लगी संबंधो के अच्छे बुरे से इन प्रोफेशनल कम्पनियों को कोई मतलब नहीं रहता। अब तो डिजिटल युग में सोशल मीडिया जैसे ई मेल फेसबुक ट्विटर द्वारा लड़के लड़की अपने रिश्ते तय करने लगे l इससे बिचौललयो का काम समाप्त हो गया l
परन्तु इस प्रकार हुए संबंधो में भी कुछ दोष पाए जाते हैं l कई बार दोनों पक्ष की सामाजिक व आर्थिक स्थिति का सही पता न होने के कारण वर वधू धोखा खा जाते हैं l कई बार वधूपक्ष के लोगो ने कानून का दरूु पयोग करके वर पक्ष के लोगो को क़ानूनी दावंपेंच में फं सा दिया और सभी की सारी जिंदगी बर्बाद हो गयी वधूपक्ष के कुछ लोगो ने ब्लैकमेलिगं का धंधा अपना लिया और कानून का दुरुपयोग करके एक मुस्त रकम लेने लगे या वर पक्ष के लोगो को जेल या सामाजिक बुराइयां करने लगे l दसूरा दोष ये हुआ कि शादी समय से न होकर देर से होने लगी सामान्यत: वर वधूकी आयु ३५ से ४० वर्ष हो गयी l इससे संतान उत्पत्ति पर भी असर पड़ा l बड़ी आयुमें शादी करने से विचारो में परिपक्वता आने के कारण लड़के व लड़की को एक दूसरे के साथ सामंजस्य करने में कठिनाइ होने लगी फलस्वरूप तलाक के मामले बढने लगे।
वैवाहिक संस्कार
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