कवयित्री कुंकुम चतुर्वेदी की कविताओं की समीक्षा

कवयित्री कुंकुम चतुर्वेदी की कविताओं की समीक्षा

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक
प्रभात खबर
कुंकुम चतुर्वेदी की कविताएं उनकी सुंदर भाषा, गहरी भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति  के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से मानवता, प्रेम, जीवन, समाज और व्यक्तिगत अनुभवों को अद्वितीय तरीके से व्यक्त किया है. कुंकुम चतुर्वेदी की कविताएं आध्यात्मिकता और अंतरात्मा के विचारों को मन में बैठाने का काम भी करती हैं. उन्होंने अपनी रचनाओं में माध्यम से मानव जीवन की महत्वपूर्ण पहलुओं को सुंदरता के साथ चित्रित किया है.उनकी कविताओं में एक अद्भुत समरसता होती है जो विभिन्न विषयों पर उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है. जे पीर पराई जाने रे- कविता में वह कहती हैं- बाहर तेज थपेड़े हैं, आशंकाओं के बादल गहरे हैं, दूर मौन रोता है कोई, किसे मनाएं किसे उठाएं.
कुंकुम चतुर्वेदी की कविताएं मर्मस्पर्शी होती हैं, जो मानव मन की गहराइयों में छू जाती हैं. उन्होंने जीवन के सभी पहलुओं को उनकी कविताओं के माध्यम से अद्वितीय तरीके से दर्शाया है - चाहे वो प्रेम की बात हो, समाज के विकास की दिशा हो या फिर व्यक्तिगत संघर्षों के सवालों का प्रस्तुतिकरण. कविता 'अम्मा तुम कहां खो गईं' में वह लिखती हैं- कहां खो गईं अम्मा तुम उस घर से, धोती का वह सीधा पल्ला, और थकी-थकी सी तुम्हारी चाल, अक्सर पल्ले के छोर से ही, तुम पौंछ लेतीं थीं अपना भाल.
कुंकुम चतुर्वेदी की कविताओं में एक ऊर्जा और उत्साह का संवाद होता है, जो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है. उनकी कविताएं उस संघर्ष और कठिनाई के बावजूद भी उम्मीद और आत्म-संवाद की भावना को बरकरार रखती हैं. समाज की समस्याओं, जीवन के सवालों, प्रेम की मिठास और उसके दुख-सुख सब कुछ कुंकुम चतुर्वेदी की कविताओं में मिलता है. उनके शब्द चयन और भावनाओं की गहराई उनकी कविताओं को एक अनूठी पहचान देती है. कुंकुम चतुर्वेदी की कविताएं मानवता के मूल मूल्यों की महत्वपूर्ण चित्रण करती हैं और हमें सही और उत्तरदायित्वपूर्ण मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करती हैं. उनकी कविताएं मर्मस्पर्शी होती हैं, पाठक के मानसिक और भावनात्मक स्तर पर गहरा प्रभाव डालती हैं. उनके शब्दों में छिपी गहराइयां और सार्थकता पाठक को उनके संवेदनाओं और विचारों के करीब ले जाती हैं. कविता 'क्यों अनगढ़ ही लुभाता है', में वह कहती हैं- क्यों अनगढ़ ही मन को भाता है, करीने और कायदे से सजे राजसी, व्यंजन हों या रूपा में परिवेषण, घर की थाली में परसी रोटी, और दाल में ही स्वाद आता है.
अपनी कविता मन की उड़ान में वह कहती हैं- सांवली सी रात में, तारों के आंचल में, जब सारी दुनिया सोती है, मन भंवरा, गुन गुन कर डोला-डोला फिरता है. कभी नदिया की धारा, कभी पुरवा की बहियों में, तीर छोड़ निकली नैया सा बहता रहता है. कुल मिलाकर, कुंकुम चतुर्वेदी की कविताएं न केवल एक शानदार कवयित्री की रचनाएं हैं, बल्कि एक अनुभव की गहराइयों और मानव भावनाओं की दुनिया को छूने की कला की उत्कृष्ट उदाहरण भी हैं. उनकी कविताएं हमें समय के माध्यम से जीवन के सार्थकता और आनंद की महत्वपूर्ण शिक्षा देती हैं.

ASHUTOSH CHATURVEDI