त्रेता युग में रामायण समकालीन एवं कलयुग में आज जीवन शैली एवं मूल्यों में दिन-रात का अन्तर आ चुका हैं, रामायण काल में जो गुरूकुल शिक्षा पद्धती थी उसमें शास्त्र के साथ साथ शस्त्र का भी ज्ञान दिया जाता था। जीवन में नैतिकता, राष्ट्रीयता और आदर्श की आवष्यकताओं की शिक्षा पर पूरा जोर दिया जाता था जबकि वर्तमान समय में विद्यालयों में केवल इसी तरह की शिक्षा पर जोर दिया जाता है कि छात्र-छात्रा कैसे ज्यादा से ज्यादा धनोपार्जन कर सकते है, यदि उसे दूसरे राष्ट्र में थोड़ा भी ज्यादा पैसा मिल रहा है तो वो अपनी योग्यता का लाभ अपने राश्ट्र की जगह दूसरे राष्ट्र को देगा। आज से 500 वर्ष पूर्व तुलसी दास जी ने जो उत्तर काण्ड में जो गुरू-शिश्य के संबंध में लिखा है, पिता-पुत्र के संबंध, समाज की मानसिकता पर जो लिखा है वो अक्षरक्ष सत्य सिद्ध हो रहा है।
रामायणकाल में भाई के प्रति भाई का, पिता के प्रति पुत्र का, पति के प्रति पत्नी का, राजा का अपनी प्रजा के प्रति जो कर्त्तव्य का निर्वहन होता था आज उसका बिलकुल विपरित हो रहा है, आज सब ये ही सोचते है कि मेरा कैसे ज्यादा से ज्यादा फायदा हो जावें सामने वाले का भलेहि कितना भी नुकसान हो जावें।
रामायण काल में अपने वचनों का बड़ा महत्व था, यदि एक कथन भी किसी को बोल दिया तो उसे कश्ट उठाकर भी जीवन भर निभाते थे, आज व्यक्ति के लिए उसके वचन से अगर उसे थोडासा भी कश्ट हो रहा है तो वो कथन उसके मुंह से निकली हुई गरम हवा से ज्यादा कुछ महत्व नहीं रखता।
रामायण काल में शत्रुता होने पर भी एक दूसरे को पूरा मौका दिया जाता था उस शत्रुता को समाप्त या मध्यम मार्ग निकालने के लिए प्रयास होते थे फिर उसके बाद युद्व भी निष्चित नियमों के तहत होता था, आज तो कई बार पता ही नहीं चलता कि ये क्षति कौन दे गया कोई अपना या कोई शत्रु।
इस तरह एक ही राश्ट्र में कालान्तर के साथ साथ जो विसंगतिया आई है इनपर अभी से ध्यान न दिया गया तो और ज्यादा ही नैतिक पतन का कारण होगा।
Feed from WhatsApp